जुड़ें परस्पर हाथ यदि तो समग्र जग में हो विकास। जुड़ें परस्पर हाथ यदि तो समग्र जग में हो विकास।
चलती नव -सजनृ की पुरवाई छू रही है, मुक्त गगन को लेकिन चरण कहां रुक पातें ? चलती नव -सजनृ की पुरवाई छू रही है, मुक्त गगन को लेकिन चरण कहां रुक पा...
इसलिए सो गया वह चिर निद्रा में। इसलिए सो गया वह चिर निद्रा में।
अपने सृजित स्वप्नलोक भ्रमण को कभी न दें आराम विश्राम। अपने सृजित स्वप्नलोक भ्रमण को कभी न दें आराम विश्राम।
उतरते हैं कानों में मेरे पिघलते शीशे की तरह ही इज़ नो मोर ! उतरते हैं कानों में मेरे पिघलते शीशे की तरह ही इज़ नो मोर !
चाह हैं मेरी, शहीदों की तरह शहादत पाऊँ ! वतन पर जान लुटाऊँ ! बेमौत न मारा जाऊँ ! चाह हैं मेरी, शहीदों की तरह शहादत पाऊँ ! वतन पर जान लुटाऊँ ! बेमौत न मारा ...